गेहूं और चावल की बिक्री की सरकारी नीति पर बाजार की गहरी नजर

12-Feb-2025 04:50 PM

नई दिल्ली । वर्ष 2023-24 के दौरान भारतीय खाद्य निगम द्वारा खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत लगभग 100 लाख टन गेहूं की रिकॉर्ड बिक्री की गई थी जिसका उद्देश्य इसकी बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना था। लेकिन उस समय चावल की सरकारी बिक्री बहुत कम हुई और गेहूं के मुकाबले नगण्य रही।

अब एक बार फिर वैसी ही स्थिति देखी जा रही है। सरकार ने दिसम्बर 2024 से मार्च 2025 तक की अवधि के लिए ओएमएसएस में बेचने के लिए 30 लाख टन गेहूं का कोटा आवंटित कर रखा है।

इसके लिए साप्ताहिक ई-नीलामी में 1.50 लाख टन की बिक्री का ऑफर दिया जा रहा है और मिलर्स- प्रोसेसर्स इसकी लगभग सम्पूर्ण मात्रा की खरीद कर रहे हैं। 

दूसरी ओर चावल की बिक्री बहुत कम हो रही है क्योंकि खुले बाजार में इसका पर्याप्त स्टॉक मौजूद है। स्वयं सरकार के पास- चावल का अत्यन्त विशाल भंडार मौजूद है और वह उसे घटाने के लिए बैचेन है।

ओएमएसएस में बिक्री के लिए चावल का कोई उच्चतम कोटा नियत नहीं किया गया है जबकि विभिन्न उद्देश्यों में बिक्री हेतु उसका दाम भी घटा दिया गया है। चावल की बिक्री भारत ब्रांड नाम के तहत भी की जा रही है। 

दरअसल इस बार केन्द्रीय बफर स्टॉक में गेहूं की बिक्री लेट से शुरू हुई जबकि तब तक थोक मंडियों में इसका भाव उछलकर अत्यन्त उन्हे स्तर पर पहुंच चुका था।

दरअसल सरकार का मानना था कि घरेलू प्रभाग में गेहूं का भरपूर स्टॉक उपलब्ध है और स्टॉक सीमा लागू होने पर मंडियों में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ेगी तो कीमतों में स्वाभाविक रूप से नरमी आ जायेगी।

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने 2023-24 के रबी सीजन में लगभग 1133 लाख टन गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान लगाया था जबकि उद्योग-व्यापार क्षेत्र का अनुमान 1020-1040 लाख टन का ही था।

जब गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता में अपेक्षित बढ़ोत्तरी नहीं हुई और न ही कीमतों में गिरावट आने का कोई संकेत मिला तो सरकार को ओएमएसएस के तहत इसकी बिक्री आरंभ करनी पड़ी।  

एथनॉल निर्माताओं के लिए सरकारी चावल का दाम 2250 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया गया है और इसकी मात्रा 24 लाख टन निर्धारित की गई है। राज्यों को केन्द्रीय पूल से एक निश्चित मूल्य पर असीमित मात्रा में चावल के उठाव की अनुमति दी गई है।