मानसून की बारिश से खरीफ फसलों को कहीं फायदा तो कहीं नुकसान

09-Jul-2025 10:54 AM

नई दिल्ली। यूं तो दक्षिण-पश्चिम मानसून जून के दूसरे हाफ में ही दोबारा सक्रिय हो गया था और देश के विभिन्न भागों में मूसलाधार बारिश का दौर शुरू हो गया था मगर जुलाई में इतनी तीव्रता और गतिशीलता बहुत अधिक बढ़ गई।

इसके फलस्वरूप कई इलाकों में सामान्य औसत से बहुत ज्यादा बारिश हुई और अब भी हो रही है। नदी-नाले तथा खेत-खलिहान पानी से भर गए हैं और वहां खरीफ फसलों की बिजाई तथा प्रगति में बाधा पड़ने लगी है।

दूसरी ओर कुछ भू भाग ऐसे भी हैं जहां बारिश का अभाव बना हुआ है और वहां न केवल खरीफ फसलों की बिजाई की गति काफी धीमी है बल्कि बीज में पूरी तरह अंकुरण नहीं होने अथवा फसल के सूख जाने से वहां दोबारा बिजाई की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

जिन इलाकों में मानसून की सामान्य बारिश हुई है वहां फसलों की बिजाई की रफ्तार काफी तेज है और किसान खेती करने में जोरदार सक्रियता भी दिखा रहे हैं। 

मानसून की पहुंच पहले ही समूचे देश में हो चुकी है और झमाझम बारिश के साथ तापमान घटने लगा है। दक्षिण में तमिलनाडु एवं केरल से लेकर उत्तर में हिमाचल प्रदेश तथा पूरब में बंगाल-आसाम से लेकर पश्चिम में गुजरात-राजस्थान तक मूसलाधार वर्षा का सिलसिला जारी है।

लेकिन महाराष्ट्र एवं कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों के कई भागों में वर्षा की कमी देखी जा रही है। देश के मध्यवर्ती भाग में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, उड़ीसा एवं झारखंड सहित अन्य राज्यों में काफी अच्छी बरसात हुई है। देश में सबसे ज्यादा वर्षा जुलाई-अगस्त में होती है और खरीफ फसलों की सर्वाधिक खेती भी इन्हीं दो महीनों में की जाती है। 

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश में 4 जुलाई तक खरीफ फसलों का रकबा बढ़कर 437.45 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 393.75 लाख हेक्टेयर से  11 प्रतिशत ज्यादा और 1097 लाख हेक्टेयर के सामान्य औसत क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले सिर्फ एक सप्ताह के दौरान खरीफ फसलों के बिजाई क्षेत्र में करीब 180 लाख हेक्टेयर की शानदार बढ़ोत्तरी हो गई जिसमें तिलहन फसलों का योगदान सबसे ज्यादा 60 लाख हेक्टेयर का रहा।

धान सहित अन्य फसलों के क्षेत्रफल में भी अच्छी वृद्धि हुई। लेकिन कहीं-कहीं अत्यन्त जोरदार वर्षा के कारण खेतों के जलमग्न होने से फसलों को नुकसान होने की सूचना मिल रही है।