खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में एक बार फिर बढ़ोत्तरी होने की संभावना
22-Feb-2025 03:42 PM
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नई दिल्ली। खरीफ कालीन तिलहन फसलों और खासकर सोयाबीन तथा मूंगफली का थोक मंडी भाव पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे चल रहा है जबकि अब रबी सीजन की सबसे प्रमुख तिलहन फसल-सरसों के नए माल की आवक शुरू हो गई है और अगले महीने से इसकी रफ्तार बढ़ने की संभावना है जिससे कीमतों पर दबाव पड़ सकता है।
तिलहन उत्पादकों को लाभप्रद मूल्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध केन्द्र सरकार खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क में बढ़ोत्तरी कर सकती है। पिछले साल सितम्बर में आयात शुल्क में 20 प्रतिशत बिंदु का इजाफा किया गया था।
हालांकि आयात शुल्क में की गई इस 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी का भारतीय बाजार पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ा और तिलहनों का मंडी भाव निचले स्तर पर ही बरकरार रहा। अब एक बार फिर सरकार इसी विकल्प को आजमाना चाहती है।
वैसे भी मलेशिया तथा इंडोनेशिया में पाम का भाव ऊंचा चल रहा है। सरकार को भरोसा है कि सीमा शुल्क में बढ़ोत्तरी होने पर खाद्य तेलों का घरेलू बाजार भाव ऊंचा होगा और तब क्रशर्स-प्रोसेसर्स को ऊंचे दाम पर तिलहन खरीदने का प्रोत्साहन मिलेगा जिससे किसानों को लाभप्रद मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
जानकारों के मुताबिक आयात शुल्क में वृद्धि का पिछला अनुभव तो अनुकूल नहीं रहा मगर आगे इसका कुछ बेहतर परिणाम सामने आ सकता है।
कमजोर बाजार भाव से किसानों को होने वाली कठिनाई को देखते हुए सरकार को 2024-25 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन के दौरान किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड मात्रा में सोयाबीन तथा मूंगफली की खरीद करनी पड़ी। उससे पूर्व रबी मार्केटिंग सीजन में भी विशाल मात्रा में सरसों की सरकारी खरीद हुई थी।
यदि बाजार भाव नरम बना रहा तो 2024-25 की भांति 2025-26 के रबी मार्केटिंग सीजन में भी सरकार को भारी मात्रा में सरसों खरीदने के लिए विवश होना पड़ सकता है। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 रुपए प्रति क्विंटल से 300 रुपए बढ़ाकर 5950 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया गया है।
सीमा शुल्क में बढ़ोत्तरी होने पर खाद्य तेलों का आयात महंगा हो जाएगा और घरेलू बाजार भाव ऊंचा होने पर इसकी मांग कुछ घट जाएगी। इससे पाम तेल, सोयाबीन तेल एवं सूरजमुखी तेल के आयात में कुछ गिरावट आने की संभावना पैदा हो सकती है।
शुल्क वृद्धि के सम्बन्ध में अंतर मंत्रालयी पैनल का विचार-विमर्श पूरा हो चुका है और सरकार जल्दी ही शुल्क में वृद्धि की घोषणा कर सकती है। समझा जाता है कि केन्द्रीय कृषि मंत्रालय इसके लिए काफी सक्रिय है और पैनल पर दबाव बनाए हुए है।