उपभोक्ताओं के साथ-साथ उत्पादकों की कठिनाई पर भी ध्यान देना आवश्यक

10-Oct-2023 02:47 PM

नई दिल्ली । सरकारी उपायों एवं नीतिगत निर्णयों के परिणामस्वरूप खाद्य महंगाई अब मुख्यत: अनाज एवं दाल-दलहन या यूं कहें कि दाल-रोटी तक सीमित हो गई है इसलिए सरकार को अब उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के साथ-साथ उत्पादकों, उद्यमियों एवं व्यापारियों की चिंता-परेशानी को दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।

खरीफ कालीन धान के नए माल की आवक शुरू हो चुकी है और खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बफर स्टॉक से चावल की बिक्री भी जारी है इसलिए बाजार लगभग स्तिर होता जा रहा है। खाद्य तेलों का दाम भी हाल के महीनों में घटकर काफी नीचे आया है।

लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार की सोच इससे अलग है। उसे लग रहा है कि चीनी का दाम काफी ऊंचा है इसलिए उसने अक्टूबर के लिए 28 लाख टन चीनी का रिकॉर्ड फ्री सेल कोटा घोषित किया है।

दलहन एवं गेहूं पर स्टॉक सीमा को समाप्त करने के अभी सही अवसर नहीं आया है। मसालों की कीमतों का स्तर काफी ऊंचा है। इसके अलावा अन्य खाद्य उत्पादों का दाम की ज्यादा नीचे नहीं आया है। 

दरअसल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने सरकार को कोई भी राहत पूर्ण निर्णय लेने से रोक दिया है। यदि अभी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की गई तो इसका घरेलू बाजार भाव उछलते देर नहीं लगेगी।

इसी तरह चावल के निर्यात की उदार नीति इसकी कीमतों में इजाफा कर सकती है। निस्संदेह उत्पादकों को इसकी फसलों का लाभप्रद मूल्य अवश्य मिलना चाहिए और उद्यमियों- व्यापारियों को भी कुछ फायदा होना चाहिए लेकिन जब बाजार अनियंत्रित हो जाता है तब सरकार को सख्त नीतिगत निर्णय लेना पड़ता है। अभी त्यौहारी सीजन है इसलिए कीमतों में तेजी की संभावना बनी हुई है।