शानदार उत्पादन के बावजूद खाद्यान्न की कीमतों में तेजी से अर्थशास्त्री हैरान

05-Sep-2023 03:10 PM

नई दिल्ली । केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 2022-23 के मार्केटिंग सीजन में चावल एवं गेहूं का उत्पादन बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया जो घरेलू मांग एवं खपत से बहुत ज्यादा है।

लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण खाद्यान्न के घरेलू बाजार भाव में आ रही तेजी से अर्थ शास्त्री हैरान हैं क्योंकि नियमानुसार रिकॉर्ड उत्पादन होने पर कीमतों में नरमी आनी चाहिए जबकि इसके विपरीत भाव काफी ऊंचा चल रहा है।

यह विरोधाभास कैसे उत्पन्न हुआ ? यहां यह भी ध्यान रखने लायक तथ्य है कि गेहूं एवं इसके उत्पादों के निर्यात पर पिछले साल से ही प्रतिबंध लगा हुआ है। टुकड़ी चावल का निर्यात भी गत वर्ष प्रतिबंधित कर दिया गया था जबकि गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर 20 जुलाई 2023 से रोक लगा दी गई।

गेहूं पर स्टॉक सीमा भी लागू है। अर्थशास्त्रियों को इस बात से भी हैरानी हो रही है कि सरकार के इन तमाम नियंत्रण कारी उपायों का गेहूं चावल के घरेलू बाजार मूल्य पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव या प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

इतना ही नहीं बल्कि सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत खुले बाजार भाव से कम मूल्य पर गेहूं और चावल की बिक्री कर रही है और मिलर्स तथा व्यापारी इसकी खरीद भी कर रहे हैं मगर बाजार भाव इसके बिलकुल अप्रभावित दिख रहा है और अपनी  ही चाल से आगे बढ़ रहा है। 

उद्योग-व्यापार समीक्षकों का कहना है कि दरअसल सरकार ने गेहूं एवं चावल का उत्पादन अनुमान काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। वास्तव में इसके उत्पादन का आंकड़ा काफी छोटा होना चाहिए था।

यदि सरकारी अनुमान के अनुरूप गेहूं का उत्पादन 1127 लाख हुआ होता तो केन्द्रीय पूल के लिए इसकी खरीद 342 लाख टन के नियत लक्ष्य तक अवश्य पहुंच जाती।

इसी तरह चावल की सरकारी खरीद भी लक्ष्य से पीछे रह गई। मंडियों में गेहूं की आपूर्ति उचित स्तर तक नहीं पहुंच सकी। किसानों एवं स्टॉकिस्टों के पास भी इसका लम्बा चौड़ा स्टॉक नहीं है। चावल का निर्यात भी सामान्य रहा। उत्पादन के आंकड़े में कुछ विसंगति है।