मसूर का विशाल आयात घरेलू उत्पादन को कर सकता है प्रभावित

05-Sep-2024 06:00 PM

नई दिल्ली । शून्य शुल्क पर विदेशों से सस्ती मसूर का विशाल आयात जारी रहने पर इसका घरेलू उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। मसूर रबी सीजन की एक प्रमुख दलहन फसल है और अक्टूबर-नवम्बर में इसकी बिजाई शुरू होने वाली है।

एक तरफ किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु मसूर का न्यूतनम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 6425 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है तो दूसरी ओर विदेशों से इसके शुल्क मुक्त आयात की अनुमति भी दी गई है।

इसका आयात खर्च 5300 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास बैठ रहा है। इससे भारतीय किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। 

2024-25 के रबी सीजन हेतु मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 6800 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास नियत होने की उम्मीद है लेकिन यदि घरेलू प्रभाग में विदेशों से आयातित सस्ते दलहन का विशाल स्टॉक मौजूद रहा तो समर्थन मूल्य में होने वाली यह बढ़ोत्तरी भारतीय किसानों के लिए ज्यादा सहायक साबित नहीं होगी।

कृषि मंत्रालय ने तुवर एवं उड़द के साथ मसूर की खरीद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने का ऐलान कर रखा है और इसके लिए खरीद की कोई निश्चित मात्रा भी निर्धारित नहीं की है। इससे किसानों को थोड़ी राहत मिल सकती है। 

शुल्क मुक्त आयात की नीति से न केवल सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है बल्कि भारतीय किसानों में गलत संदेश भी जा रहा है। समर्थन मूल्य बढ़ाकर सस्ते आयात की मंजूरी देना परस्पर विरोधी नीति है।

हैरानी की बात है कि सरकार बफर स्टॉक बनाने के लिए विदेशों से आयातित मसूर की खरीद ऊंचे दाम पर करती है। इससे यह सवाल उठता है कि मसूर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति क्यों और किसके लिए दी जा रही है ? आत्मनिर्भरता के लिए यह नीति अनुकूल नहीं है।