मौसम की अनिश्चितता से गेहूं-मक्का एवं सोयाबीन का वैश्विक उत्पादन प्रभावित होने की आशंका

26-Dec-2023 08:34 PM

शिकागो । एक अग्रणी व्यापार विश्लेषक का कहना है कि वर्ष 2024 में अनाज एवं तिलहन के वैश्विक बाजार में काफी हलचल रह सकती है। निर्यात-आयात की मांग मजबूत रहेगी और इसमें सख्त प्रतिस्पर्धा भी दिखाई पड़ेगी, यूक्रेन में युद्ध के कारण विकट स्थिति बनी रहेगी, अमरीका एवं ब्राजील में घरेलू आपूर्ति बढ़ाने का प्रयास हो सकता है, विभिन्न फसलों के बिजाई क्षेत्र के लिए दुविधा रहेगी और सामुद्रिक परिवहन खर्च में बढ़ोत्तरी की संभावना रहेगी।

लेकिन इन सबसे भी ज्यादा जो कारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा वह मौसम है। मौसम की अनिश्चित हालत के कारण वर्ष 2024 में खासकर गेहूं, मक्का एवं सोयाबीन जैसी फसलों का उत्पादन तथा भाव काफी हद तक प्रभावित हो सकता है।

समझा जाता है कि अल नीनो मौसम चक्र का प्रभाव और प्रकोप कमोबेश अगले वर्ष की पहली छमाही तक बरकरार रह सकता है जबकि अमरीका, कनाडा, यूरोप कमोबेश अगले वर्ष की पहली छमाही तक बरकरार रह सकता है जबकि अमरीका, कनाडा, यूरोप तथा ऑस्ट्रेलिया में अप्रैल से जून के बीच वसंतकालीन एवं पतझड़ कालीन फसलों की बिजाई होती है। 

अमरीका में मैदानी बहग में शीत कालीन गेहूं की बिजाई हो चुकी है और कुल मिलाकर फसल की अच्छी प्रगति हो रही है। नवम्बर के अंत तक अमरीका में गत वर्ष के मुकाबले सुखग्रस्त क्षेत्र का दायरा बहुत घट गया था इसके तहत कंसास, टेक्सास, कोलराडो, नेब्रास्का, मोन्टाना एवं दक्षिण डकोटा जैसे प्रांतों में सूखा प्रभावित क्षेत्र का दायरा काफी घट गया है। 

लेकिन ब्राजील में इसका दायरा बढ़ रहा है जिससे वहां सोयाबीन एवं प्रथम सीजन सीजन के मक्का की फसल पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

ब्राजील के उत्तरी मध्यवर्ती एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र में भयंकर सूखे की स्थिति बनी हुई है जबकि दक्षिणी प्रांतों में मूसलाधार बारिश होने की सूचना है। उधर अर्जेन्टीना भी सूखे की गिरफ्त में था मगर हाल ही में वहां कई राज्यों में वर्षा होने से फसल की हालत बेहतर हो गई। आगे भी वहां बारिश की जरूरत पड़ेगी। 

इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में कहीं सूखा तो कहीं वर्षा-बाढ़ का खेल चल रहा है। वैसे वहां वसंतकालीन फसलों की कटाई-तैयारी अंतिम चरण में पहुंच गई है और हाल की वर्षा को ग्रीष्मकालीन फसलों की बिजाई के लिए अनुकूल माना जा रहा है।  एशिया पर भी अल नीनो का प्रभाव है जिससे खासकर चावल एवं पाम तेल के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।