अगस्त के प्रथम सप्ताह में मानसून रहा कमजोर
07-Aug-2025 05:34 PM

नई दिल्ली। पिछले एक- दो सप्ताहों से दक्षिण-पश्चिम मानसून की सक्रियता एवं गतिशीलता में कमी देखी जा रही है। वैसे कुछ इलाकों में इसकी सक्रियता बरकरार है।
चालू मानसून सीजन के दौरान अब तक राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य औसत से अधिक बारिश हो चुकी है और अगस्त-सितम्बर में भी दीर्घकालीन औसत से ज्यादा वर्षा होने की संभावना व्यक्त की है। बांधों-जलाशयों में पानी का स्तर बढ़ रहा है मगर खरीफ कालीन दलहन-तिलहन फसलों का रकबा घट गया है।
मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जून से 4 अगस्त 2025 के बीच देश में दीर्घकालीन औसत (एलपीए) के सापेक्ष 104 प्रतिशत बारिश हुई जबकि 30 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह तक इसका आंकड़ा 107 प्रतिशत था। इससे संकेत मिलता है कि पिछले कुछ दिनों से मानसून की रफ्तार धीमी चल रही है।
वर्षा का क्षेत्रवार विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि अधिकांश भाग में बारिश की स्थिति लगभग सामान्य रही मगर दक्षिणी प्रायद्वीप में इसकी कमी का दायरा बढ़ गया। यदि चालू माह (अगस्त) के दौरान मानसून की बारिश सामान्य हुई तो फसलों की बिजाई काफी हद तक पूरी हो सकती है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1 अगस्त 2025 तक धान और दलहनों का उत्पादन क्षेत्र इसके सामान्य औसत क्षेत्रफल के लगभग 80 प्रतिशत तक पहुंच गया था
लेकिन दलहनों का रकबा गत वर्ष से 3.6 प्रतिशत पीछे चल रहा था। तिलहनों की बिजाई भी कम क्षेत्रफल में हुई। कपास का उत्पादन क्षेत्र घट रहा है मगर गन्ना के बिजाई क्षेत्र में कुछ बढ़ोत्तरी हुई है।
31 जुलाई को देश के 161 प्रमुख बांधों-जलाशयों में उसकी कुल भंडारण क्षमता के मुकाबले 69 प्रतिशत पानी का स्टॉक मौजूद था जो गत वर्ष की समान अवधि के स्टॉक 30 प्रतिशत से 39 प्रतिशत बिंदु ज्यादा था। इससे फसलों की सिंचाई में अच्छी सहायता मिलने की उम्मीद है।
जुलाई-अगस्त को सर्वाधिक वर्षा वाला महीना माना जाता है। जुलाई में देश के अंदर भरपूर बारिश हुई और मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पादक राज्यों के कई भागों में भयंकर बाढ़ आ गई। वहां अब शुष्क मौसम की जरूरत है ताकि खेतों से पानी की अधिशेष मात्रा को बाहर निकलने में सहायता मिल सके।