दलहनों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य है काफी चुनौतीपूर्ण
05-Feb-2025 07:48 PM
नई दिल्ली । केन्द्रीय आम बजट में दलहन मिशन के गठन का प्रस्ताव स्वागत योग्य है क्योंकि इससे देश को दाल-दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने का अच्छा अवसर और मजबूत आधार मिल सकता है।
कमजोर घरेलू उत्पादन एवं बढ़ती खपत के कारण वर्ष 2024 में दलहनों का आयात तेजी से उछलकर 66.33 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया जिस पर अत्यन्त विशाल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च हुई।
घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को चाहते हुए भी पहले पीली मटर और बाद में देसी चना के आयात को शुल्क मुक्त करना पड़ा जबकि तुवर, उड़द एवं मसूर का आयात काफी पहले से ही शुल्क मुक्त था। इसके फलस्वरूप दलहनों के आयात में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो गई।
पिछले साल के आरंभ में केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा था कि वर्ष 2027 तक भारत दाल-दलहन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा और वर्ष 2028 से देश में विदेशों से एक किलो दलहन का आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन वर्ष 2024 के रिकॉर्ड आयात को देखते हुए दलहनों में आत्मनिर्भरता हासिल करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य प्रतीत होता है।
सरकार ने छह वर्षीय दलहन मिशन के लिए 1000 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया है। इसके तहत खासकर तीन दलहन फसलों-तुवर, उड़द एवं मसूर का उत्पादन बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जाएगा।
दलहन फसलों की सरकारी खरीद बढ़ाने हेतु न्यूतनम समर्थन मूल्य का इंतजाम करना तथा भंडारण सुविधाओं का विकास-विस्तार करना तो आवश्यक है ही मगर उससे भी ज्यादा जरुरी दलहनों की औसत उपज दर बढ़ाना तथा किसानों को हर तरह का सहयोग-समर्थन उपलब्ध करवाना है।
भारत दुनिया में दलहनों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं आयातक देश है। उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी के जरिए ही आयात पर निर्भरता घटाना संभव हो सकता है।