गैर बासमती चावल के निर्यात में गिरावट का सिलसिला जारी
23-Jun-2025 01:50 PM

नई दिल्ली। ईरान-इजरायल युद्ध के कारण बासमती चावल तथा अफ्रीकी देशों की कमजोर मांग के कारण गैर बासमती या सामान्य चावल का निर्यात प्रभावित होने लगा है।
समझा जाता है कि अफ्रीका के प्रमुख आयातक देशों में पूर्व में आयातित चावल का अच्छा खासा स्टॉक मौजूद रहने से मांग कमजोर पड़ गई है। पिछला स्टॉक घटने पर ये देश भारतीय चावल की खरीद में पुनः दिलचस्पी दिखाएंगे।
निर्यातकों के अनुसार भारत से कच्चा (सफेद) चावल, सेला चावल, टुकड़ी चावल तथा बासमती चावल का व्यापारिक निर्यात पूरी तरह स्वतंत्र है और इस पर न तो कोई शुल्क या नियंत्रण लागू है और न ही इसके लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) निर्धारित है।
इसलिए सरकार की तरफ से चावल के निर्यात को हतोत्साहित करने या सीमित रखने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। भारतीय गैर बासमती चावल का निर्यात ऑफर मूल्य भी प्रतिस्पर्धी या आकर्षक स्तर पर बरकरार है मगर आयातक देशों में अधिशेष स्टॉक मौजूद होने से निर्यात कारोबार सुस्त पड़ गया है।
जहां तक बासमती चावल का सवाल है तो वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-मार्च) के दौरान पहली बार भारत में इसका निर्यात तेजी से उछलकर 60 लाख टन से ऊपर के ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। 2025-26 के वर्तमान वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों में भी इसका निर्यात प्रदर्शन संतोषजनक रहा लेकिन फ्री ऑन बोर्ड औसत इकाई निर्यात ऑफर मूल्य में कमी आ गई।
जून में ईरान का इजरायल के साथ भयंकर युद्ध शुरू हो गया जिससे बासमती चावल के निर्यात पर खतरा बढ़ गया। ईरान पहले भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक देश था।
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत से लगभग 25 प्रतिशत बासमती चावल का निर्यात अकेले ईरान को किया गया था। ईरान अब इसके आयात में पिछड़ कर तीसरे नंबर पर आ गया है। जब तक ईरान-इजरायल युद्ध जारी रहेगा तब तक ईरान में भारतीय बासमती चावल के निर्यात में अनिश्चितता बनी रहेगी।
इसी तरह जब तक अफ्रीका और एशिया के प्रमुख आयातक देशों में अधिशेष स्टॉक उपलब्ध रहेगा तब तक भारत से गैर बासमती चावल के निर्यात में जोरदार तेजी आना मुश्किल लगता है।
भारत में चावल का निर्यात योग्य भरपूर स्टॉक मौजूद है और कीमतों के बारे में भी कोई समस्या नहीं है। जरूरत है तो केवल आयातक देशों में जोरदार मांग निकलने की।