जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में दलहन उत्पादन पर खतरा
14-Apr-2025 06:03 PM

नई दिल्ली। ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में दलहनों के उत्पादन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। अक्सर दलहन फसलों की बिजाई में एक माह तक की देर हो जाती है जबकि फसल की कटाई-तैयारी जल्दी शुरू होती है। इससे फसल की उपज दर एवं किसानों की आमदनी में गिरावट आने की आशंका है।
हालांकि भारत दुनिया में दलहनों का सबसे प्रमुख उत्पादक देश बना हुआ है मगर यह केवल विशाल क्षेत्रफल का नतीजा है वरना दलहन फसलों की उत्पादकता तो अधिकांश देशों के साथ-साथ वैश्विक औसत से भी काफी नीचे रहती है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से न केवल तापमान में भारी उतार-चढ़ाव आता है बल्कि वर्षा की हालत भी अनियमित एवं अनिश्चित होती जा रही है।
इससे दलहन फसलों को अक्सर भारी नुकसान हो जाता है क्योंकि ये फसलें प्रतिकूल मौसम के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जब फसल में फूल एवं दाना बनने की प्रक्रिया जारी रहती है तब मौसम का अनुकूल होना अत्यन्त आवश्यक माना जाता है।
लेकिन अक्सर उस समय या तो लम्बे समय तक बारिश नहीं होने से मौसम शुष्क बना रहता है या फिर भारी वर्षा होने से खेतों में पानी जमा हो जाता है।
यह दोनों ही स्थिति फसल के लिए अनुकूल नहीं होती है और उसका विकास अवरुद्ध कर देती है जिससे उपज दर में स्वाभाविक रूप से गिरावट आ जाती है। शुष्क एवं गर्म मौसम से पौधों में संकुचन बढ़ता है और इसलिए फूल जल्दी झड़कर जमीन पर गिर जाते हैं।
ध्यान देने की बात है कि अब गर्मी का मौसम फरवरी में ही आरंभ हो जाता है जबकि उस समय रबी कालीन दलहन फसलों को सामान्य तापमान की जरूरत पड़ती है।
उत्तरी भारत में शीत कालीन वर्षा का भी अभाव देखा जा रहा है जबकि चना, मसूर एवं मटर का अधिकांश उत्पादन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्यों में होता है।
अभी तक तो हालात काफी हद तक सामान्य बने हुए हैं लेकिन आने वाला समय दलहन फसलों के लिए प्रतिकूल हो सकता है क्योंकि मौसम अनिश्चित होता जा रहा है।